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ए॒ष वां॑ देवावश्विना कुमा॒रः सा॑हदे॒व्यः। दी॒र्घायु॑रस्तु॒ सोम॑कः ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

eṣa vāṁ devāv aśvinā kumāraḥ sāhadevyaḥ | dīrghāyur astu somakaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒षः। वा॒म्। दे॒वौ॒। अ॒श्वि॒ना॒। कु॒मा॒रः। सा॒ह॒ऽदे॒ऽव्यः। दी॒र्घऽआ॑युः। अ॒स्तु॒। सोम॑कः ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:15» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:16» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अध्यापक और उपदेशक विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देवौ) विद्वानो (अश्विना) सम्पूर्ण विद्याओं में व्याप्त आप दोनों ! जैसे (एषः) यह ब्रह्मचारी (वाम्) आप दोनों अध्यापक और उपदेशक के (साहदेव्यः) विद्वानों के साथ रहनेवालों में श्रेष्ठ (सोमकः) चन्द्रमा के सदृश शीतलस्वभाववाला (कुमारः) ब्रह्मचारी (दीर्घायुः) बहुत काल पर्य्यन्त जीवनेवाला (अस्तु) हो वैसा प्रयत्न करो ॥९॥
भावार्थभाषाः - अध्यापक और उपदेशक ऐसा प्रयत्न करें कि जिससे धार्मिक अधिक अवस्थावाले और विद्वान् पढ़नेवाले होवें ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाऽध्यापकोपदेशकविषयमाह ॥

अन्वय:

हे देवावश्विना ! युवां यथैव वां साहदेव्यः सोमकः कुमारो दीर्घायुरस्तु तथा प्रयतेथाम् ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एषः) ब्रह्मचारी (वाम्) युवयोरध्यापकोपदेशकयोः (देवौ) विद्वांसौ (अश्विना) सर्वविद्याव्यापिनौ (कुमारः) (साहदेव्यः) (दीर्घायुः) चिरञ्जीवी (अस्तु) भवतु (सोमकः) सोम इव शीतलस्वभावः ॥९॥
भावार्थभाषाः - अध्यापकोपदेशकौ तादृशं प्रयत्नं कुर्य्यातां येन धार्मिका दीर्घायुषो विद्वांसोऽध्येतारः स्युः ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - अध्यापक व उपदेशकांनी असा प्रयत्न करावा की, ज्यामुळे शिकणारे विद्यार्थी धार्मिक, दीर्घायुषी व विद्वान व्हावेत. ॥ ९ ॥